Thursday 31 March 2011

जीवन एक क्रिकेट है ..... सबका अपना अपना रन रेट है .....

आचार्यश्री  तरुणसागर जी स्वरचित कविता  जो हाल ही में दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुई है !
मै काफी प्रभावित हूँ  इसलिए आप लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूँ !

जीवन एक क्रिकेट है.......
सृष्टि के महान स्टेडियम में,
धरती की विराट पिच पर
समय बोलिंग कर रहा है!
शरीर बल्लेबाज है ,
पमात्मा के इस आयोजन में 
अम्पायर धर्मराज है !
बीमारियाँ फील्डिंग कर रहीं हैं ,
विकेटकीपर यमराज है 
प्राण हमारा विकेट है 
जीवन एक क्रिकेट है !
इस डे नाइट के मेच 
हमे रचनात्मकता के जलवे दिखाना है ,
और सांसो के सीमित ओवर में 
सृजन के रन बनाना है !
गिल्लियां उड़ने का अर्थ साँस का टूट जाना है ,
एलबीडबल्यु यानि हार्ट अटेक!
दुर्घटना  में मरनेवाला रन आउट कहलाता है
और सीमा पर शहीद होनेवाला 
केच आउट कहा जाता है !
आत्महत्या का अर्थ हिट विकेट 
और हत्या स्टंप आउट हो जाना है !
कभी कभी कुछ आक्रामक खिलाडी,
जल्द ही पेवेलियन लौट जाते हैं 
लेकिन पारी ऐसी खेलते हैं 
कि कीर्तिमान बना जाते हैं !
सबका अपना अपना रन रेट है !
जीवन एक क्रिकेट है .....        

Sunday 27 March 2011

ट्रेड सीक्रेट

कभी कभी हमे अनजाने में ही  व्यवहारिक जीवन की कुछ ऐसी सच्चाई पता लग जाती हैं जिनके बारे में शायद हम कल्पना भी नहीं करते !आज से लगभग १७-१८ वर्ष पूर्व ,मै मेरे श्वसुर की अस्थियाँ विसर्जित कर हरिद्वार से  दिल्ली टेक्सी से आ रहा था ! टेक्सी  चालक  का नाम सुरिंदर था और उसकी बातचीत के लहजे से लग रहा था कि वह हरियाणा का  रहने वाला है , साथ में उसका भतीजा भी था ! हरिद्वार से दिल्ली की दूरी लगभग २००-२५० कि.मी. होगी !थोड़ी देर तो इधर उधर कि बात चीत करते रहे लेकिन अंत में कोई विषय नहीं बचा तो  मैंने  नींद लेना ही उचित समझा ! गर्मी के दिन थे तो जल्दी ही झपकी  भी लग गई !

इस बीच  चाचा भतीजे अपने घर परिवार की बातें करते रहे ! उनकी बातचीत से ऐसा लग रहा था कि वो भतीजे को भी टेक्सी व्यवसाय में ही लगाना चाहता  है  ! सुरिंदर भतीजे को  टेक्सी व्यवसाय के गुर बताने लगा ! चूँकि मेरी नींद भी हो चुकी थी और थोडा फ्रेश  महसूस कर रहा था इसलिए उत्सुकता वश मै उन दोनों कि बातें ध्यान से सुनने लगा !चाचा उसे  बता रहा था टेक्सी चलाते समय सामने वाले वाहन चालक से यदि यह पूछना हो कि आगे आरटीओ कि चेकिंग चल रही है अथवा नहीं तो एक विशेष प्रकार का इशारा करके पता लगाना चाहिए! लेकिन चँकि आरटीओ इन सब लटकों  झटकों से वाकिफ होतें है इसलिए इस तरह इशारा करके पूछने में     एक खतरा यह भी  रहता है, कि कई बार आरटीओ स्वयम ही वाहन में बैठा होता है और वह खुद ही इस तरह का इशारा करके सामने वाली गाडी को ट्रेप कर लेता है ! मुझे उसकी  बातों में मजा आने लगा और मैं भी ध्यान से उन दोनों कि बातें सुनने लगा ! 
बातों बातों में एक बात जो उसने अपने भतीजे को बताई वो आज भी मैं नहीं भूल पाया हूँ ! उसने कहा बाकि तो सब ठीक है भतीजे पर एक बात गांठ बांध कर याद रखना,  आरटीओ का व् ट्रांसपोर्ट व्यवसाय वालों का रिश्ता पति-पत्नी से भी ज्यादा गहरा होता है ! दोनों का एक दुसरे से कुछ भी छुपा नहीं होता है ! एक बार रिश्तेदारों से संबंध बिगाड़ सकते हो लेकिन आरटीओ से नहीं ! आरटीओ का कुत्ता भी मर जाये तो मातम पुरसी के लिए जाना मत भूलना लेकिन , लेकिन, खास और सबसे ध्यान देने वाली बात  कि    यदि आरटीओ  खुद  मर जाये तो उसके घर जाने कि कोई जरुरत नहीं है ,बल्कि नये आने वाले आरटीओ  के स्वागत के लिए सबसे पहले पहुँच जाना !   
उसकी अंतवाली बहुमूल्य व्यवहारिक सलाह सुन कर मैं एकदम अवाक् रह गया और सोचने लगा कि क्या  सचमुच व्यवसाय में आदमी को इतना व्यवहारिक होना चाहिए ?

Thursday 10 March 2011

sud: सामंजस्य

sud: सामंजस्य: "काफी पहले मेने एक कहानी पढ़ी थी ,एक छोटा बच्चा बहुत ध्यान पूर्वक लकड़ी का एक बर्तन बनाने कि कोशिश कररहा था! उसके माता पिता ने उत्सुकता..."

सामंजस्य

काफी पहले मेने एक कहानी पढ़ी थी ,एक छोटा बच्चा बहुत ध्यान पूर्वक  लकड़ी का एक बर्तन बनाने कि कोशिश कररहा था! उसके माता पिता ने उत्सुकतावश  उससे पूछा बेटे तुम ये  क्या बना रहे हो ? बेटे ने बड़ी ही मासूमियत से जबाब दिया ,जैसे आप लोग दादाजी को लकड़ी के बर्तन में खाना देते हो इसलिए जब आप लोग भी बूढ़े हो जाओगे ,तो मैं भी आप लोगों के लिए इसी लकड़ी के बर्तन में खाना दिया करूंगा ! अबोध बच्चे का अप्रत्याशित  उत्तर सुन कर माँ बाप  अवाक् रह गये !
लेकिन दोस्तों यह केवल एक कहानी नही है ,यह हर आम हिन्दुस्तानी घर की हकीगत है जो हमे अलग अलग रूपों में हर घर  में दिखाई देती है ! आज हर युवा दम्पति में बूढ़े माँ बाप से छुटकारा पाने की होड़ सी लग गई है और इसके लिए यह युवा पीढ़ी किसी भी हद तक जाने में संकोच नही करते हैं! मेरी  एक परिचित  महिला हैं, उनके दो बेटे  व् एक बेटी है ! बेटी बेटों की शादी हो चुकी है ! कुछ वर्षों पहले उनके पति का देहांत हो चूका है ! उनकी पृठभूमि भी मध्यमवर्गीय परिवार की है ! सालों तक किराये के मकान में रहे थोड़े थोड़े पैसे जोड़  कर एक मकान बनवाया ! दोनों लडके इसी मकान में रहते हैं हालाँकि बड़े बेटे और बहु दोनों सर्विस में है और दोनों ने  उसी शहर में दो मकान भी बनवा  लिए हैं , दोनों मकान किराये से दे रखे हैं ! बहु बेटे को बूढी मां फूटी आँख भी नही भा रही है ! जब तक उनके बच्चे छोटे थे तब मां की जरूरत थी ,अब जब बच्चे बड़े हो गए हैं ,तो मां को  साथ में रखना भारी पड रहा है वह भी तब जब मकान अभी मां के नाम पर है! बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब बहू- बेटे ने मां पर चोरी का इल्जाम लगा दिया और अब बाकायदा धमकी दी जा रही है की या तो मकान  उनके नाम कर दो नही तो  दस लाख नकद दे दो !      
आज के जमाने ऐसे एक नही सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे ! आप को ज्यादा दूर जाने की भी जरूरत नही है हर दुसरे घर में कमोबेश यही कहानी दोहराई जा रही है! आज की युवा पीढ़ी को क्या हो  गया है भौतिकता की चकाचोंध में विचार शक्ति ही क्षीण हो गई है ! मां बाप की उपेक्षा करते हुए उनको जरा  भी एहसास  नहीं होता कि  कल वो लोग भी बूढ़े होंगे और उनके बच्चे भी उनसे इसी प्रकार का व्य!वहार करेंगे तो उन्हें कैसा लगेगा ! मै युवा पीढ़ी के प्रति किसी पूर्वाग्रह  के कारण ऐसा कह रहा हूँ ऐसी बात नहीं है, लेकिन अधिकांश घरों की यही कहानी है ! निश्चित रूप इसमे कुछ अपवाद अवश्य होंगे ,लेकिन ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है!मै यह भी मानने को तैयार हूँ सभी मामलों में युवा पीढ़ी का ही दोष हो ऐसा जरुरी नहीं है कुछ मामलों में माता  पिता भी दोषी हो सकते हैं , लेकिन आज के माहौल को देखकर ऐसी सम्भावना कम ही लगती है !
क्या भगवान राम का ,अपने पिता द्वारा सौतेली मां को दिए वचन के खातिर चौदह वर्षों  का वनवास भोगना      श्रवण कुमार द्रारा बूढ़े मां बाप को कावड में बिठा कर तीर्थ यात्रा करवाना केवल कहानी मात्र हैं इनका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है! चलो मान भी  लिया जाये की सब कहानी ही है परन्तु कहानी भी तो हमे कुछ न कुछ  सन्देश तो अवश्य ही  देती ही है ! अरे हमारे शास्त्रों  में तो माता पिता को ईश्वर तुल्य माना गया है और हम उसी ईश्वर की उपेक्षा कैसे कर सकते हैं ! आज हम  जो भी  हैं ,जिस लायक भी हैं , केवल अपने माता पिता के ही कारण ही तो हैं ! तो फिर उनकी ऐसी उपेक्षा ऐसा अनादर क्यों ?माता पिता के साथ इस प्रकार का व्यवहार , केवल मानसिक रुग्णता   का परिचायक है  और यह बीमारी कोढ़ की तरह बहुत तेजी से हमारे समाज में फैलती जा रही!
आज आवश्यकता इस बात है कि युवा पीढ़ी व् बुजुर्गों को आपस में सामजस्य के साथ जीने कि कला, सीखना होगी ! युवाओं को माता पिता को उचित सम्मान देना होगा साथ ही माँ बाप को भी युवाओं कि भावनाओं को समझना होगा व् अपने अहम का भी त्याग करना होगा फिर देखिये जिन्दगी कितनी खुबसूरत लगने लगेगी! जिन्दगी में सम्बन्धों को निभाना  चाहिए, ढोना नहीं ! 

Friday 4 March 2011

संगत

कहते हैं की संगत का असर  जीवन को काफी प्रभावित करता है ! संगत  अच्छी हो तो जीवन जीने का नजरिया ही बदल जाता है !  संगत बुरी हो ठीक उल्टा भी होता है ! चिन्मय मिशन के पूज्य गुरुदेव नास्तिक ही थे ! इंग्लिश अख़बार के प्रतिनिधि के रूप में किसी भगवा वस्त्र धारी का  साक्षात्कार लेने हरिद्रार गए ! वंहा महात्मा लोगों के प्रवचन सुने और ऐसे प्रभावित हुए कि सांसारिक मोह माया का त्याग कर दिया ! भगवत गीता तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों का गहराई से अध्ययन किया!  उनका कहना था कि गीता के एक एक अध्याय में जीवन का सार छिपा हुआ है ! हर श्लोक में जीवन का रहस्य गर्भित है ! आवश्यकता है  उस रहस्य को समझने कि ! यदि समझ लिया तो जीवन जीने का मकसद मिल जायेगा ! आत्म बोध हो जायेगा तो सारे  कष्ट अपने आप दूर हो जायेंगे ! डगर कठिन अवश्य है पर असम्भव नहीं !
अच्छी संगत का  काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है ! हमारी सोच ,रहन सहन, आचार विचार सभी आसपास के वातावरण से प्रभावित होते हैं ! जीवन  में हमे हमारे  माता पिता, भाई बहन अथवा बेटे बेटी चुनने का अधिकार नहीं है ! अर्थात  हमारे हमारे माता पिता -पुत्र पुत्री कोन हों इसका निश्चय हम नहीं कर सकते हैं ,   परन्तु हमे हमारे  मित्र चुनने का अधिकार अवश्य है !अर्थात हमारे मित्र कैसे हों, कोन हों , यह अधिकार अवश्य हमे प्राप्त है और हमे  इस अधिकार का उपयोग  बहुत सोच समझकर  करना चाहिए ! जीवन में हर वो चीज जो हम चाहते हैं  नहीं मिल पाती परन्तु  अच्छा मित्र हमे अवश्य मिल सकता है , लेकिन यह सिर्फ हमारे और सिर्फ हमारे उपर ही निर्भर है ! संसार में अछे बुरे सभी प्रकार के लोग मिलेंगे !

च्वाइस इज अवर्स !