Monday 6 June 2011

पता नहीं चला

जीवन की इस आप धापी में 
साठवे पड़ाव पर कब  पहुंचा 
पता नहीं चला !
इसकी, उसकी उलझन
सुलझाते सुलझाते  कब यंहां पहुंचा
पता नहीं चला !
इन साठ सालों का हिसाब लगाया
लेकिन नफा नुकसान का
 पता नहीं चला!
इतने सालों में,मै अपने लिये  कब जिया
पता नहीं चला!
बेटी के नन्हे हातों को पकड़कर,
चलाना सिखाते सिखाते ,
कब पोते का हाथ हाथ में आया
पता नहीं चला ! 
आज जब लगता है सब कुछ पा लिया , 
तो अभावों में बिताये दिनों का
पता नहीं चला !

 





1 Comments:

At 6 June 2011 at 02:43 , Blogger sid said...

touching, straight from the heart!!

 

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