Wednesday 29 February 2012

मार्केटिग

आज कल एक शब्द बहुत ज्यादा प्रचलन में है और वो  है" मार्केटिंग", जिसको देखो वो अपने  उत्पाद के  प्रचार प्रसार में लगा हुआ है,और तो और आज कल नायक नायिका भी अपनी फिल्म के प्रमोशन हेतु शहर शहर में जा रहे हैं ! टी. वी. व् प्रिंट मीडिया विज्ञापन के  सशक्त माध्यम हैं , जिसके कारण आजकल विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गई है !
मेरा ऐसा मानना है कि  विज्ञापन के नाम पर आजकल लोगों के सामने कुछ भी प्रस्तुत किया जा रहा है ! मुझे इस बात को स्वीकारने में जरा भी संकोच नहीं है कि कुछ विज्ञापन तो सर के उपर से ही निकल जाते हैं और मै ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि ऐसा बहुतों के साथ हो रहा होगा! लेकिन यह सच्चाई स्वीकारने में उनको संकोच होता होगा !
मुझे तो कईबार ऐसा भी लगता है कि  इस विधा से जुड़े लोग शायद  यह मानते हैं कि इस कला द्वारा न केवल अनपढ़ बल्कि पढ़े लिखे लोगों को भी  बेवकूफ  बनाया जा सकता है!  क्योंकि वो लोग ऐसा मानते है कि विज्ञापन के नाम पर आप कुछ भी परोस सकते हैं दर्शक/पाठक  शायद अपना दिमाग कहीं और रखकर विज्ञापन देखता/पढ़ता है! मिसाल के तौर इन  विज्ञापनों  को देखिये :
१-सिनेमा हाल में पिक्चर चल रही है व् किसी दर्शक के दांत में दर्द होता है तो पिक्चर कि नायिका रुपहले पर्दे से निकल कर पीड़ित दर्शक से पूछती है कि क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है ? व् बाद में फिर पर्दे पर पहुंच कर सीन करने लगती है !
२-पंखे के एक विज्ञापन में स्कूल के बच्चे शिक्षिका को समझाते हैं उत्तर पुस्तिका से हवा न करें क्योंकि यह उनकी साल भर की मेहनत है !
३-लाइफबाय साबुन के विज्ञापन में डाक्टर यह बताता है कि यह साबुन दस इन्फेक्शन फ़ैलाने वाले कीटाणुओं से आपकी सुरक्षा करता है! लेकिन श्रीमान जी, इन्फेक्शन क्या केवल दस कीटाणुओं से ही फैलता है ? ग्याह्रवा कीटाणु आ गया, तो क्या करोगे ?
४-शेम्पू के विज्ञापन में दिखाया जाता है एक लडकी कीचड़ में फंसे हुए ट्रक को अपने बालों से खींचकर निकाल लेती है , ये सब अतिश्योक्ति नहीं है तो और क्या है! विज्ञापन के नाम पर कुछ भी दिखाने की छूट तो नहीं दी जा सकती है!           
५-टूथपेस्ट के एक विज्ञापन में फिल्म का नायक यह बताता है (इंग्लिश में )  कि अमुक टूथपेस्ट से ब्रश करने के बाद " वाब मच लेस जर्म्स ,नाव माय माउथ इज एज हेल्दी एज आय एम् " अर्थात ब्रश करने के बाद भी जर्म्स तो अभी भी हैं लेकिन मात्रा कम है व् जर्म्स के बावजूद माउथ हेल्दी है !
ऐसे ही हजारों लोक लुभावने विज्ञापन बड़े बड़े अक्षरों में आपको प्रस्तुत किये जाते हैं और वहीँ एक छोटासा स्टार भी लगा दिया जाता है और अंत में एक कोने  बहुत ही बारीक़ अक्षरों में "शर्ते लागू" लिखा हुआ मिलेगा ! इनके आलावा भी ऐसे हजारों अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं!
मैं मानता हूँ कि अर्थशास्त्र हमें बताता है कि विज्ञापन पर किया गया खर्च पूंजीगत व्यय होता है अर्थात यह एक प्रकार का विनियोग है , जिसके द्रारा उत्पाद के विक्रय  के ग्राफ में जबर्दस्त उछाल आता है ! कई बार तो विज्ञापन पर किया खर्च उत्पाद के लागत खर्च से भी ज्यादा होता है लेकिन अंत में तो यह भी लागत में जोड़कर उपभोक्ता से ही वसूला जाता है ! मेरा विज्ञापन से कोई विरोध नहीं है , लेकिन सरकार को इस ओर ध्यान देकर समुचित हस्तक्षेप द्वारा विज्ञापन के नाम पर
कुछ भी व् अतिश्योक्ति  पर  अंकुश लगाना चाहिए !


Tuesday 8 November 2011

अपेक्षा

"अपेक्षा" वैसे तो तीन अक्षरों से बना यह एक साधारण शब्द है जिसका अर्थ किसी व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्ति से उस व्यक्ति की भूमिका के अनुसार अपेक्षित व्यवहार है ! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे हर पल विभिन्न प्रकार की भूमिकाये निभाना पडती है ! जैसे माता पिता के समक्ष बेटे की भूमिका , पत्नी के सामने पति की भूमिका बच्चों के सामने पिता की भूमिका , आफिस में बॉस के सामने अधीनस्थ की व् अधिनस्थों के सामने बॉस की भूमिका इत्यादि इत्यादि!  मनुष्य जिस  भी भूमिका में हो वह सामने वाले व्यक्ति से अपनी सोच के अनुसार व्यवहार की अपेक्षा रखता है ! लेकिन सामने वाला व्यक्ति अपेक्षित व्यक्ति की सोच के अनुसार व्यवहार करे ऐसा अक्सर होता नही है !
मेरा ऐसा मानना है कि इस संसार में ९९% समस्या कि जड यह "अपेक्षा" ही है ! यह समस्या समाज के हर व्यक्ति के साथ जुडी हुई है ! देश के प्रधान मंत्री से लेकर छोटे तबके के सबसे छोटे व्यक्ति के साथ सामान रूप से है ! आज बाबा रामदेव को सरकार से अपेक्षा है कि वह विदेशों में जमा कालाधन वापस लेन हेतु कारगर उपाय करेगी ! अन्ना कि टीम को सांसदों व् प्रधान मंत्री से अपेक्षा है कि वे शीघ्र जनलोकपाल बिल पास करे ! उधर सरकार व् राजनेताओं कि अपेक्षा है कि अन्ना जनलोकपाल बिल के कुछ प्रावधानों  पर जोर न देकर सरकार द्वारा लाये जाने वाले बिल पर सहमत हों ! आम आदमी कि अपेक्षा है कि सरकार महंगाई कम करे ! आम आदमी कि अपेक्षा है कि वह कोन बनेगा करोडपति के कार्यक्रम का हिस्सा बने अभिताभ बच्चन के सामने बैठ कर पांच करोड़ कमाए ! लेकिन वास्तव में हर व्यक्ति कि अपेक्षा पूरी हो यह संभव नही है ! जिसकी अपेक्षा भंग हो गयी वह सांत्वना के उपाय ढूढने की कोशिश करता है क्योंकि उसके पास दूसरा पर्याय नही है !
इस अपेक्षा के खेल में जो बलशाली है साधन संपन्न है, जिनके पास सत्ता है , जो कूटनीति, राजनीती में माहिर है , उनका पलड़ा हमेशा भारी रहता है लेकिन जो कमजोर है साधन विहीन है, सत्ता से बाहर है वह अनपेक्षित रह जाता है ! अपेक्षा की बाजी में कब किसका पलड़ा भारी होगा यह अनुमान लगाना बेमानी होता है खासकर राजनीती  में, ऐसा विशेषज्ञ  कहते हैं ! यदि हम हमारे परिवार के परिप्रेक्ष में भी देखें तो मां-बाप बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा देते है  इस अपेक्षा के साथ की बुढ़ापे  वह उनकी देख भाल करेगा बेटा यह अपेक्षा करता है कि वह अपने सोच के अनुसार जिन्दगी जीए व्  मां -बाप उसमे टोका टाकी न करे ! मां बाप अपेक्षा करते है कि  लडकी उनके पसंदीदा लडके से शादी करे  लडकी कि अपेक्षा है माता पिता को उसकी पसंद के लडके के लिए हाँ करना चाहिए !
लेकिन व्यवहारिक जीवन में ऐसा होता नही है कि सामनेवाला आपकी अपेक्षा के अनुरूप व्यवहार करे अथवा आपकी सोच से इत्तफाक रखे, और वहीँ से शुरू होती सारी परेशानियाँ , गलतफहमी, मन मुटाव , दुराव , अलगाव ! इस अपेक्षा शब्द  का हम कुछ दूसरा पर्यायवाची शब्द भी प्रयोग कर सकते है पर कुल  मिलाकर निचोड़ यही निकलेगा कि यदि हमे जिन्दगी में खुश रहना है तो हमे किसी से कोई अपेक्षा रखे बिना जीने कि आदत डालना होगी तभी हमारी अधिकांश समस्याए अपने आप कम हो जावेंगी ! मै जानता हूँ कि यह बहुत कठिन है ,लेकिन हम एक कोशिश तो कर ही सकते है फिर फर्क अपने आप महसूस करेंगे!           

Wednesday 6 July 2011

युवा वर्ग एवं नशा

19 जून को इन्दोर की एक पाश कालोनी में तीन महिलाओं की हत्या की खबर आती है ! तीन  दिन बाद पुलिस हत्यारों का पता लगा  कर उनको गिरफ्तार  करती है! हत्यारे 20-से 25 वर्ष की आयु के युवा है ! जिनमे दो लडके व् एक लडकी है !
पुलिस पूछताछ में पता चला है कि हत्यारे नशे के आदि  हैं, और हत्या लूट के इरादे से की गयी थी ! हत्या के समय भी ये लोग नशे में थे ! पुलिस के लिए यह एक घटना मात्र हो सकती है  लेकिन सभ्य समाज के लिए यह घटना एक बदनुमा दाग है ! समाज सेवकों बुध्हिजीवियों ,राजनेताओं व् सामाजिक कार्यकर्त्ताओं  द्वारा पत्रकारों और मीडिया के सामने घटना की कड़ी निदा  करने मात्र से कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाती है ! हम सभी को इस विषय पर बहुत गहराई से विचार करना होगा ! क्योंकि इस तरह की घटनाएँ पुरे देश में घट रही हैं जिसका मुख्य कारण बेरोजगारी, नशीली दवाओं का सेवन, आधुनिकता के नाम पर फूहड़ पाश्चात्य संस्कृति  ही, है ! नशीली दवाओं के सेवन की लत युवा वर्ग के लिए नासूर बन गई है, और इसका सेवन करने वालों की तादाद बड़ी तेजी से बढ़ रही है ! आज की  युवा पीठी इस हद तक गुमराह हो रही है कि नशे की लत की आड़ में हत्या जैसे जघन्य अपराध करते हुए भी इन लोगों के हाथ नहीं कांपते ! असामाजिक तत्वों व् चंद रुपयों के लालच में नशीली दवाओं का व्यापार करने वालों के विरूद्ध कठोरतम  कार्यवाही होना चाहिए व्  इन लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए !  
सरकार एवं समाज के सभी वर्गों  को इस बुराई के विरूद्ध लड़ने के लिए एक मजबूत इच्छा शक्ति के साथ ईमानदार पहल करनी होगी !  



Monday 20 June 2011

शुद्ध पानी वाला दूध

मैंने दूध वाले से कहा, भैया कितना पानी मिलाते हो ? 
वह बोला पानी नहीं मिलायेंगे, तो दूध फट जायेगा !
मैंने कहा मिलाना ही है तो हमारे यहाँ से ले जाया करो 
हम लोग फिल्टर का पीते हैं , कम से कम 
यह तो तसल्ली रहेगी  ,कि शुद्ध पानी वाला दूध पी रहे हैं !
वह बोला साहब ,कोशिश तो हमारी भी यही रहती है,
कि अच्छा ही पानी मिलाएं पर क्या करे, 
धंधे में तो थोड़ी बहुत उंच नीच तो चलती है !
और फिर क्या है साहब, सभी लोग तो,
आपकी तरह फिल्टर का पानी नहीं पीते  !
हम को तो सभी का ख्याल रखना पड़ता है!
वरना कुछ लोग शुद्ध पानी वाला दूध पी कर,
बीमार पड़ गए ,तो हमारी बेवजह  बदनामी होगी  
इसलिए आपकी वजह से हम,
इतनी बड़ी रिस्क नहीं ले सकते !
जमता हो तो, लो नहीं तो,जय राम जी की
मै अवाक सा उस की तरफ देखता रहा  !
अंदर से पत्नी की आवाज आई ,क्या हुआ ?
इतनी देर क्यों हो गयी, जल्दी भी करो  !  
बंटी को स्कूल के लिए, आज भी देर हो जाएगी !
मै काफी देर तक सोचता रहा, मेने गलत क्या कहा था ? 




Friday 17 June 2011

स्वप्न रंगवितो

मी  स्वप्न रंगवितो ,मी स्वप्न रंगवितो ! 
इन्द्रधनुषी स्वप्न रंगवितो!
मला ठाउक आहे कि,
स्वप्न रंगवायची पण माझी लायकी नाही
कां की मी ह्या जगातला दरिद्री माणुस आहे
तरी ही मी स्वप्न रंगवितो !     
इन्द्रधनुषी स्वप्न रंगवितो !
स्वप्नात तरी, मी बायका व् पोर
पोट भर जेवतो, म्हणून मी स्वप्न रंगवितो ! 
इन्द्रधनुषी स्वप्न रंगवितो !      
मला कोणी झिडकारेल ह्याची भीती नाही 
ह्या करिताच मी स्वप्न रंगवितो  !    
इन्द्रधनुषी स्वप्न रंगवितो !   
मला सकाळ पण नकोशी वाटते
सकाळ झाली कि स्वप्न नाहीसे होतात 
म्हणूनच मी स्वप्न रंगवितो !
इन्द्रधनुषी स्वप्न रंगवितो !
स्वप्नात जगण्याच आनद्च वेगळ असत 
ह्या साठीच मी स्वप्न रंगवितो !
इन्द्रधनुषी स्वप्न रंगवितो !
द्रद्रिद्र्याना पण स्वप्न पाहण्याची  देवा कडून,
फार मोठी देणगी आहे म्हणूनच 
मी स्वप्न रंगवितो ! 
इन्द्रधनुषी स्वप्न रंगवितो !  
  





Thursday 16 June 2011

समय बड़ा बलवान

हम सभी के जीवन में समय का बड़ा महत्व है ! जिसने जीवन में समय के महत्व को जान लिया उसका जीवन सफल हो गया !मनुष्य को समय के साथ चलना पड़ता जो समय के साथ नहीं चला वह पीछे रह जायगा !अच्छा व् बुरा समय हरेक के  जीवन में आता है जिसने बुरे समय पर विजय प्राप्त कर ली वह हमेशा यशस्वी होता है ! जिसने बुरे समय को अपने उपर हावी होने दिया वह व्यक्ति उपर नहीं उठ पायेगा ! समय बहुत चंचल है अच्छा हो या बुरा ज्यादा समय किसी के पास नहीं  टिकता  है ! अच्छा समय शीघ्र ही कट जाता है लेकिन  बुरे समय को काटना पड़ता है और यदि बुरे समय को काटने की शक्ति नहीं जुटा पाए तो वह मनुष्य को ही काट देता है अर्थात मनुष्य आत्महत्या भी कर बैठता है!  

राजा हो या रंक सभी को समय के आगे नतमस्तक तो होना ही पड़ता है ! यह  समय ही था जिसके कारण राजा राम को चौदह वर्षों का वनवास भोगना पड़ा ! समय यदि सही  नहीं है तो हर सीधा दाव भी उल्टा पड़ता है और समय सही है तो व्यक्ति कुछ भी करे सही ही हो जाता  है ! इसलिए गीता में भी कहा गया है कि" समय बड़ा बलवान वही अर्जुन वही बाण" !समय की  एक और खासियत है , कि समय के पंख भी होते हैं और तब यह उड़ भी सकता है और समय रेंग भी सकता है !जब हम परीक्षा हाल  में पेपर हल कर रहे होते हैं तो हमे समय का पता ही नहीं चलता ऐसे लगता है जैसे समय को पंख लग गए हों तीन घंटे कब बीत जाते हैं पता नहीं लगता , लेकिन जब हम स्टेशन पर या बस स्टाप पर ट्रेन या बस का इंतजार कर रहे होते हैं और तभी पता लगता है की ट्रेन या बस लेट है , तो लगता है जैसे समय रेंग रहा हो ! बहुत से कालेजों में तो "समय प्रबन्धन"  एक विषय के रूप में भी पढ़ाया जाता है ! हमे जीवन में यह भी अच्छी तरह ज्ञात होना चाहिए के किस काम के लिए कितना समय दिया जाना चाहिए क्योंकि समय की भी अपनी सीमा होती है ! इसीलिए जीवन में समय का सदुपयोग करना आना चाहिए जिसने समय कि महत्ता समझ ली और समय का सदुपयोग किया वही  जीवन के हर मोड़ पर  सफल होगा और जिसने समय का दुरूपयोग किया वह हाथ मलते रह जायेगा !कुछ लोग समय को भाग्य  से जोड़ लेते हैं लेकिन भाग्य  और समय दोनों अलग अलग हैं क्यों की कुछ लोग भाग्य में नही कर्म में विश्वास  करते हैं ! 

 अत: समय बहुत कीमती है इसे व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए ! समय की कीमत समझने  में ही बुद्धिमानी है ! 


Growing evils of drug addiction

Drug addiction is major cause of concern in our society. this evil has spread all over the world..The sad part of it is that people specially youth  is attracted to this evil. Now a days college going boys and girls and even in some cases school going children are also found involve in this activity. Addiction of drugs is certainly very dangerous and once  some one is addicted, he finds very difficult to come out of this evil.The worst part of it is drug  consumer tempted  to commit crimes also. If  drug addicts does not have the money then he tries to find some other short cut method to get it at any cost and for that he  can go to any extent Police report says that crime graph of drug addicts is rising very sharply and  in most of the cases  boys commit crime because they need money for consuming drugs.The greatest concern of our society is that number of such drug consumers is increasing very rapidly. Anti social elements are targeting the innocent boys and girls of age group of between 18-25.

Although the government  is taking all possible steps to deal with this anti social elements and also committed to rehabilitate  these innocent  victims.But  governments alone can not fight with this situation we as a society has also a moral responsibility to change its attitude  of looking at these addicts. We should have sympathy towards these drug addicts and give them a chance to bring reforms among themselves and bring them in to the main stream of the society..     . .