Tuesday 8 November 2011

अपेक्षा

"अपेक्षा" वैसे तो तीन अक्षरों से बना यह एक साधारण शब्द है जिसका अर्थ किसी व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्ति से उस व्यक्ति की भूमिका के अनुसार अपेक्षित व्यवहार है ! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे हर पल विभिन्न प्रकार की भूमिकाये निभाना पडती है ! जैसे माता पिता के समक्ष बेटे की भूमिका , पत्नी के सामने पति की भूमिका बच्चों के सामने पिता की भूमिका , आफिस में बॉस के सामने अधीनस्थ की व् अधिनस्थों के सामने बॉस की भूमिका इत्यादि इत्यादि!  मनुष्य जिस  भी भूमिका में हो वह सामने वाले व्यक्ति से अपनी सोच के अनुसार व्यवहार की अपेक्षा रखता है ! लेकिन सामने वाला व्यक्ति अपेक्षित व्यक्ति की सोच के अनुसार व्यवहार करे ऐसा अक्सर होता नही है !
मेरा ऐसा मानना है कि इस संसार में ९९% समस्या कि जड यह "अपेक्षा" ही है ! यह समस्या समाज के हर व्यक्ति के साथ जुडी हुई है ! देश के प्रधान मंत्री से लेकर छोटे तबके के सबसे छोटे व्यक्ति के साथ सामान रूप से है ! आज बाबा रामदेव को सरकार से अपेक्षा है कि वह विदेशों में जमा कालाधन वापस लेन हेतु कारगर उपाय करेगी ! अन्ना कि टीम को सांसदों व् प्रधान मंत्री से अपेक्षा है कि वे शीघ्र जनलोकपाल बिल पास करे ! उधर सरकार व् राजनेताओं कि अपेक्षा है कि अन्ना जनलोकपाल बिल के कुछ प्रावधानों  पर जोर न देकर सरकार द्वारा लाये जाने वाले बिल पर सहमत हों ! आम आदमी कि अपेक्षा है कि सरकार महंगाई कम करे ! आम आदमी कि अपेक्षा है कि वह कोन बनेगा करोडपति के कार्यक्रम का हिस्सा बने अभिताभ बच्चन के सामने बैठ कर पांच करोड़ कमाए ! लेकिन वास्तव में हर व्यक्ति कि अपेक्षा पूरी हो यह संभव नही है ! जिसकी अपेक्षा भंग हो गयी वह सांत्वना के उपाय ढूढने की कोशिश करता है क्योंकि उसके पास दूसरा पर्याय नही है !
इस अपेक्षा के खेल में जो बलशाली है साधन संपन्न है, जिनके पास सत्ता है , जो कूटनीति, राजनीती में माहिर है , उनका पलड़ा हमेशा भारी रहता है लेकिन जो कमजोर है साधन विहीन है, सत्ता से बाहर है वह अनपेक्षित रह जाता है ! अपेक्षा की बाजी में कब किसका पलड़ा भारी होगा यह अनुमान लगाना बेमानी होता है खासकर राजनीती  में, ऐसा विशेषज्ञ  कहते हैं ! यदि हम हमारे परिवार के परिप्रेक्ष में भी देखें तो मां-बाप बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा देते है  इस अपेक्षा के साथ की बुढ़ापे  वह उनकी देख भाल करेगा बेटा यह अपेक्षा करता है कि वह अपने सोच के अनुसार जिन्दगी जीए व्  मां -बाप उसमे टोका टाकी न करे ! मां बाप अपेक्षा करते है कि  लडकी उनके पसंदीदा लडके से शादी करे  लडकी कि अपेक्षा है माता पिता को उसकी पसंद के लडके के लिए हाँ करना चाहिए !
लेकिन व्यवहारिक जीवन में ऐसा होता नही है कि सामनेवाला आपकी अपेक्षा के अनुरूप व्यवहार करे अथवा आपकी सोच से इत्तफाक रखे, और वहीँ से शुरू होती सारी परेशानियाँ , गलतफहमी, मन मुटाव , दुराव , अलगाव ! इस अपेक्षा शब्द  का हम कुछ दूसरा पर्यायवाची शब्द भी प्रयोग कर सकते है पर कुल  मिलाकर निचोड़ यही निकलेगा कि यदि हमे जिन्दगी में खुश रहना है तो हमे किसी से कोई अपेक्षा रखे बिना जीने कि आदत डालना होगी तभी हमारी अधिकांश समस्याए अपने आप कम हो जावेंगी ! मै जानता हूँ कि यह बहुत कठिन है ,लेकिन हम एक कोशिश तो कर ही सकते है फिर फर्क अपने आप महसूस करेंगे!           

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