मार्केटिग
आज कल एक शब्द बहुत ज्यादा प्रचलन में है और वो है" मार्केटिंग", जिसको देखो वो अपने उत्पाद के प्रचार प्रसार में लगा हुआ है,और तो और आज कल नायक नायिका भी अपनी फिल्म के प्रमोशन हेतु शहर शहर में जा रहे हैं ! टी. वी. व् प्रिंट मीडिया विज्ञापन के सशक्त माध्यम हैं , जिसके कारण आजकल विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गई है !
मेरा ऐसा मानना है कि विज्ञापन के नाम पर आजकल लोगों के सामने कुछ भी प्रस्तुत किया जा रहा है ! मुझे इस बात को स्वीकारने में जरा भी संकोच नहीं है कि कुछ विज्ञापन तो सर के उपर से ही निकल जाते हैं और मै ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि ऐसा बहुतों के साथ हो रहा होगा! लेकिन यह सच्चाई स्वीकारने में उनको संकोच होता होगा !
मुझे तो कईबार ऐसा भी लगता है कि इस विधा से जुड़े लोग शायद यह मानते हैं कि इस कला द्वारा न केवल अनपढ़ बल्कि पढ़े लिखे लोगों को भी बेवकूफ बनाया जा सकता है! क्योंकि वो लोग ऐसा मानते है कि विज्ञापन के नाम पर आप कुछ भी परोस सकते हैं दर्शक/पाठक शायद अपना दिमाग कहीं और रखकर विज्ञापन देखता/पढ़ता है! मिसाल के तौर इन विज्ञापनों को देखिये :
१-सिनेमा हाल में पिक्चर चल रही है व् किसी दर्शक के दांत में दर्द होता है तो पिक्चर कि नायिका रुपहले पर्दे से निकल कर पीड़ित दर्शक से पूछती है कि क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है ? व् बाद में फिर पर्दे पर पहुंच कर सीन करने लगती है !
२-पंखे के एक विज्ञापन में स्कूल के बच्चे शिक्षिका को समझाते हैं उत्तर पुस्तिका से हवा न करें क्योंकि यह उनकी साल भर की मेहनत है !
३-लाइफबाय साबुन के विज्ञापन में डाक्टर यह बताता है कि यह साबुन दस इन्फेक्शन फ़ैलाने वाले कीटाणुओं से आपकी सुरक्षा करता है! लेकिन श्रीमान जी, इन्फेक्शन क्या केवल दस कीटाणुओं से ही फैलता है ? ग्याह्रवा कीटाणु आ गया, तो क्या करोगे ?
४-शेम्पू के विज्ञापन में दिखाया जाता है एक लडकी कीचड़ में फंसे हुए ट्रक को अपने बालों से खींचकर निकाल लेती है , ये सब अतिश्योक्ति नहीं है तो और क्या है! विज्ञापन के नाम पर कुछ भी दिखाने की छूट तो नहीं दी जा सकती है!
५-टूथपेस्ट के एक विज्ञापन में फिल्म का नायक यह बताता है (इंग्लिश में ) कि अमुक टूथपेस्ट से ब्रश करने के बाद " वाब मच लेस जर्म्स ,नाव माय माउथ इज एज हेल्दी एज आय एम् " अर्थात ब्रश करने के बाद भी जर्म्स तो अभी भी हैं लेकिन मात्रा कम है व् जर्म्स के बावजूद माउथ हेल्दी है !
ऐसे ही हजारों लोक लुभावने विज्ञापन बड़े बड़े अक्षरों में आपको प्रस्तुत किये जाते हैं और वहीँ एक छोटासा स्टार भी लगा दिया जाता है और अंत में एक कोने बहुत ही बारीक़ अक्षरों में "शर्ते लागू" लिखा हुआ मिलेगा ! इनके आलावा भी ऐसे हजारों अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं!
मैं मानता हूँ कि अर्थशास्त्र हमें बताता है कि विज्ञापन पर किया गया खर्च पूंजीगत व्यय होता है अर्थात यह एक प्रकार का विनियोग है , जिसके द्रारा उत्पाद के विक्रय के ग्राफ में जबर्दस्त उछाल आता है ! कई बार तो विज्ञापन पर किया खर्च उत्पाद के लागत खर्च से भी ज्यादा होता है लेकिन अंत में तो यह भी लागत में जोड़कर उपभोक्ता से ही वसूला जाता है ! मेरा विज्ञापन से कोई विरोध नहीं है , लेकिन सरकार को इस ओर ध्यान देकर समुचित हस्तक्षेप द्वारा विज्ञापन के नाम पर
कुछ भी व् अतिश्योक्ति पर अंकुश लगाना चाहिए !
मेरा ऐसा मानना है कि विज्ञापन के नाम पर आजकल लोगों के सामने कुछ भी प्रस्तुत किया जा रहा है ! मुझे इस बात को स्वीकारने में जरा भी संकोच नहीं है कि कुछ विज्ञापन तो सर के उपर से ही निकल जाते हैं और मै ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि ऐसा बहुतों के साथ हो रहा होगा! लेकिन यह सच्चाई स्वीकारने में उनको संकोच होता होगा !
मुझे तो कईबार ऐसा भी लगता है कि इस विधा से जुड़े लोग शायद यह मानते हैं कि इस कला द्वारा न केवल अनपढ़ बल्कि पढ़े लिखे लोगों को भी बेवकूफ बनाया जा सकता है! क्योंकि वो लोग ऐसा मानते है कि विज्ञापन के नाम पर आप कुछ भी परोस सकते हैं दर्शक/पाठक शायद अपना दिमाग कहीं और रखकर विज्ञापन देखता/पढ़ता है! मिसाल के तौर इन विज्ञापनों को देखिये :
१-सिनेमा हाल में पिक्चर चल रही है व् किसी दर्शक के दांत में दर्द होता है तो पिक्चर कि नायिका रुपहले पर्दे से निकल कर पीड़ित दर्शक से पूछती है कि क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है ? व् बाद में फिर पर्दे पर पहुंच कर सीन करने लगती है !
२-पंखे के एक विज्ञापन में स्कूल के बच्चे शिक्षिका को समझाते हैं उत्तर पुस्तिका से हवा न करें क्योंकि यह उनकी साल भर की मेहनत है !
३-लाइफबाय साबुन के विज्ञापन में डाक्टर यह बताता है कि यह साबुन दस इन्फेक्शन फ़ैलाने वाले कीटाणुओं से आपकी सुरक्षा करता है! लेकिन श्रीमान जी, इन्फेक्शन क्या केवल दस कीटाणुओं से ही फैलता है ? ग्याह्रवा कीटाणु आ गया, तो क्या करोगे ?
४-शेम्पू के विज्ञापन में दिखाया जाता है एक लडकी कीचड़ में फंसे हुए ट्रक को अपने बालों से खींचकर निकाल लेती है , ये सब अतिश्योक्ति नहीं है तो और क्या है! विज्ञापन के नाम पर कुछ भी दिखाने की छूट तो नहीं दी जा सकती है!
५-टूथपेस्ट के एक विज्ञापन में फिल्म का नायक यह बताता है (इंग्लिश में ) कि अमुक टूथपेस्ट से ब्रश करने के बाद " वाब मच लेस जर्म्स ,नाव माय माउथ इज एज हेल्दी एज आय एम् " अर्थात ब्रश करने के बाद भी जर्म्स तो अभी भी हैं लेकिन मात्रा कम है व् जर्म्स के बावजूद माउथ हेल्दी है !
ऐसे ही हजारों लोक लुभावने विज्ञापन बड़े बड़े अक्षरों में आपको प्रस्तुत किये जाते हैं और वहीँ एक छोटासा स्टार भी लगा दिया जाता है और अंत में एक कोने बहुत ही बारीक़ अक्षरों में "शर्ते लागू" लिखा हुआ मिलेगा ! इनके आलावा भी ऐसे हजारों अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं!
मैं मानता हूँ कि अर्थशास्त्र हमें बताता है कि विज्ञापन पर किया गया खर्च पूंजीगत व्यय होता है अर्थात यह एक प्रकार का विनियोग है , जिसके द्रारा उत्पाद के विक्रय के ग्राफ में जबर्दस्त उछाल आता है ! कई बार तो विज्ञापन पर किया खर्च उत्पाद के लागत खर्च से भी ज्यादा होता है लेकिन अंत में तो यह भी लागत में जोड़कर उपभोक्ता से ही वसूला जाता है ! मेरा विज्ञापन से कोई विरोध नहीं है , लेकिन सरकार को इस ओर ध्यान देकर समुचित हस्तक्षेप द्वारा विज्ञापन के नाम पर
कुछ भी व् अतिश्योक्ति पर अंकुश लगाना चाहिए !