सामंजस्य
काफी पहले मेने एक कहानी पढ़ी थी ,एक छोटा बच्चा बहुत ध्यान पूर्वक लकड़ी का एक बर्तन बनाने कि कोशिश कररहा था! उसके माता पिता ने उत्सुकतावश उससे पूछा बेटे तुम ये क्या बना रहे हो ? बेटे ने बड़ी ही मासूमियत से जबाब दिया ,जैसे आप लोग दादाजी को लकड़ी के बर्तन में खाना देते हो इसलिए जब आप लोग भी बूढ़े हो जाओगे ,तो मैं भी आप लोगों के लिए इसी लकड़ी के बर्तन में खाना दिया करूंगा ! अबोध बच्चे का अप्रत्याशित उत्तर सुन कर माँ बाप अवाक् रह गये !
लेकिन दोस्तों यह केवल एक कहानी नही है ,यह हर आम हिन्दुस्तानी घर की हकीगत है जो हमे अलग अलग रूपों में हर घर में दिखाई देती है ! आज हर युवा दम्पति में बूढ़े माँ बाप से छुटकारा पाने की होड़ सी लग गई है और इसके लिए यह युवा पीढ़ी किसी भी हद तक जाने में संकोच नही करते हैं! मेरी एक परिचित महिला हैं, उनके दो बेटे व् एक बेटी है ! बेटी बेटों की शादी हो चुकी है ! कुछ वर्षों पहले उनके पति का देहांत हो चूका है ! उनकी पृठभूमि भी मध्यमवर्गीय परिवार की है ! सालों तक किराये के मकान में रहे थोड़े थोड़े पैसे जोड़ कर एक मकान बनवाया ! दोनों लडके इसी मकान में रहते हैं हालाँकि बड़े बेटे और बहु दोनों सर्विस में है और दोनों ने उसी शहर में दो मकान भी बनवा लिए हैं , दोनों मकान किराये से दे रखे हैं ! बहु बेटे को बूढी मां फूटी आँख भी नही भा रही है ! जब तक उनके बच्चे छोटे थे तब मां की जरूरत थी ,अब जब बच्चे बड़े हो गए हैं ,तो मां को साथ में रखना भारी पड रहा है वह भी तब जब मकान अभी मां के नाम पर है! बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब बहू- बेटे ने मां पर चोरी का इल्जाम लगा दिया और अब बाकायदा धमकी दी जा रही है की या तो मकान उनके नाम कर दो नही तो दस लाख नकद दे दो !
आज के जमाने ऐसे एक नही सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे ! आप को ज्यादा दूर जाने की भी जरूरत नही है हर दुसरे घर में कमोबेश यही कहानी दोहराई जा रही है! आज की युवा पीढ़ी को क्या हो गया है भौतिकता की चकाचोंध में विचार शक्ति ही क्षीण हो गई है ! मां बाप की उपेक्षा करते हुए उनको जरा भी एहसास नहीं होता कि कल वो लोग भी बूढ़े होंगे और उनके बच्चे भी उनसे इसी प्रकार का व्य!वहार करेंगे तो उन्हें कैसा लगेगा ! मै युवा पीढ़ी के प्रति किसी पूर्वाग्रह के कारण ऐसा कह रहा हूँ ऐसी बात नहीं है, लेकिन अधिकांश घरों की यही कहानी है ! निश्चित रूप इसमे कुछ अपवाद अवश्य होंगे ,लेकिन ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है!मै यह भी मानने को तैयार हूँ सभी मामलों में युवा पीढ़ी का ही दोष हो ऐसा जरुरी नहीं है कुछ मामलों में माता पिता भी दोषी हो सकते हैं , लेकिन आज के माहौल को देखकर ऐसी सम्भावना कम ही लगती है !
क्या भगवान राम का ,अपने पिता द्वारा सौतेली मां को दिए वचन के खातिर चौदह वर्षों का वनवास भोगना श्रवण कुमार द्रारा बूढ़े मां बाप को कावड में बिठा कर तीर्थ यात्रा करवाना केवल कहानी मात्र हैं इनका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है! चलो मान भी लिया जाये की सब कहानी ही है परन्तु कहानी भी तो हमे कुछ न कुछ सन्देश तो अवश्य ही देती ही है ! अरे हमारे शास्त्रों में तो माता पिता को ईश्वर तुल्य माना गया है और हम उसी ईश्वर की उपेक्षा कैसे कर सकते हैं ! आज हम जो भी हैं ,जिस लायक भी हैं , केवल अपने माता पिता के ही कारण ही तो हैं ! तो फिर उनकी ऐसी उपेक्षा ऐसा अनादर क्यों ?माता पिता के साथ इस प्रकार का व्यवहार , केवल मानसिक रुग्णता का परिचायक है और यह बीमारी कोढ़ की तरह बहुत तेजी से हमारे समाज में फैलती जा रही!
आज आवश्यकता इस बात है कि युवा पीढ़ी व् बुजुर्गों को आपस में सामजस्य के साथ जीने कि कला, सीखना होगी ! युवाओं को माता पिता को उचित सम्मान देना होगा साथ ही माँ बाप को भी युवाओं कि भावनाओं को समझना होगा व् अपने अहम का भी त्याग करना होगा फिर देखिये जिन्दगी कितनी खुबसूरत लगने लगेगी! जिन्दगी में सम्बन्धों को निभाना चाहिए, ढोना नहीं !
आज आवश्यकता इस बात है कि युवा पीढ़ी व् बुजुर्गों को आपस में सामजस्य के साथ जीने कि कला, सीखना होगी ! युवाओं को माता पिता को उचित सम्मान देना होगा साथ ही माँ बाप को भी युवाओं कि भावनाओं को समझना होगा व् अपने अहम का भी त्याग करना होगा फिर देखिये जिन्दगी कितनी खुबसूरत लगने लगेगी! जिन्दगी में सम्बन्धों को निभाना चाहिए, ढोना नहीं !
1 Comments:
Good one, I know from where this is coming from. There are no words that can describe this heinous act. All we can say is God bless them that they consider an amount of 10 lacs worth more than the love of their parents.
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