Wednesday 27 October 2010

तोतले लोग ऐसे ही बोलते हैं

जून १९८१ में हम लोग ग्वालियर से इंदौर ट्रान्सफर हो कर आये थे .आई ,बाबा व् मोहिनी (छोटी बहन) व् साथ में हमारी नन्ही व् प्यारी   बेटी स्वाति, हम सभी लोग साथ में रहते थे. हमारे एक मित्र  श्री सिद्दीकी  जो भारतीय जीवन बीमा निगम में नौकरी करते हैं,  कभी कभी घर पर आते रहते थे. श्री सिद्दीकी और हमारी मित्रता १९७२ से है जब हम नौकरी  में लगे लगे ही थे. हालंकि  वो बीमा कार्यालय में थे और मै, बैंक में, फिर भी हमारी  मित्रता प्रगाढ़ थी   और  आज भी वैसे ही कायम है. सिद्दीकी न केवल पारिवारिक मित्र हैं बल्कि परिवार के सदस्य है.
हम लोग जब इंदौर आये थे तो स्वाति लगभग ३-४ साल की रही होगी. नन्ही चुलबुली व् बड़ी बड़ी आँखों वाली स्वाति सभी को अपनी और आकर्षित कर ही लेती थी  सिद्दीकी जब भी आते थे तो अक्सर स्वाति से खेलते रहते थे स्वाति भी उनसे बराबरी  से तर्क करती व् दोनों में नोक झोंक चलती रहती थी.एक बार की बात है दोनों  अन्ताक्षरी  खेल रहे थे. स्वाति भी अपनी बाल बुद्द्धि का पूरा पूरा  उपयोग करते हुए बराबरी से  खेल रही थी.

स्वाति के ऊपर ट शब्द आया और उसे ट से गाना गाना था . लेकिन उसे ट से गाना याद नही आ रहा था पर वह हार मानने को तैयार नही थी.उसने त से गाना शुरू किया जिस पर हमारे मित्र ने आपत्ति ली और कहा की गाना ट से ही गाना पड़ेगा .स्वाति का बाल मन भी सहज रूप से हार स्वीकार करने को तैया नही था उसने तर्क दिया कि चूँकि  तोतले लोग ट को त ही बोलते हैं इसलिए उसने त से गाना गया है जो मान्य किया जाना चाहिए
स्वाति के उस बाल बुद्धि तर्क को सुनकर हम सभी लोग हँसे बिना नही रह सके.सिद्दीकी साहब भी एक बार तो निरुत्तर हो गए शायद उन्हें भी इस तर्क की उम्मीद नही थी.स्वाति के जिद के आगे सिद्दीकी साहब को झुकना पड़ा.




 

1 Comments:

At 16 November 2010 at 10:12 , Blogger Genie said...

hahaha..... I just love Swati Tai's sense of humor...and the way that she always carries this lovely smile of hers...that's the way life should be lived!

Really appreciate that aspect of hers!

 

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