वजन कम करना
बात उन दिनों की हे जब १९७२ में मैं दिवाली की छुट्टियों में ग्वालियर से अशोकनगर राज्य परिवहन की बस से
यात्रा कर रहा था उन दिनों में आज की तरह वतानिकुलित व् सुसज्जित बसे नहीं चला करती थी राज्य परिवहन की बस में होर्न को छोड़कर सब कुत्छ बजता था . इस के अलावा गंत्य्व पर कब पहुचेगी ये शायद ईश्वर ही जानता था .उन दिनों राज्य परिवहन की बस से यात्रा करना किसी जोखिम उठाने से कम नहीं था. परन्तु आम जनता के पास दूसरा विकल्प भी नहीं था.
बस समय से रवाना हुई लेकिन रस्ते में हमेशा की तरह कुछ तकनिकी खराबी आ गयी और बस रुक गयी चालक बोला धक्का लगाना पड़ेगा.बस में अधिकतर यात्री अनपढ़ तथा गांववाले ही थे और उन सभी लोगों में मैं ही पढ़ा लिखा था. परिचालक ने सभी यात्रियों से कहा की उतरकर धक्का लगाना पड़ेगा केवल महिलाओं व् मुझे छोड़कर सभी यात्री उतरकर धक्का लगा रहे थे मैं पढ़े लिखे होने का दंभ पाले हुए बस में ही बैठा रहा .यह बात शायद परिचालक को अच्छी नहीं लगी उसने झल्लाते हुए मुझसे कहा "" धक्का नहीं लगा सकते तो कम से कम बस से उतरकर वजन ही कम कर दो."मुझे उसकी यह बात अच्छी नहीं लगी और में अपमानित महसूस करने लगा लेकिन शायद वह सही था इसीलिए मैं खिसियाता हुआ बस से उतर गया और बस को धक्का लगाने लगा.
आज इतने सालो बाद भी इस घटना को याद करता हूँ तो लगता है कंडक्टर बिलकुल सही था.अब यदि धक्का लगाने का मौका आता है तो सबसे पहले मैं उतरकर धक्का लगता हूँ. आज इतने सालों के बाद भी कंडक्टर की वह सीख नहीं भूल पाया हूँ .
2 Comments:
That is the reason you should not have ego. Even if someone who is less educated than you shouts at you, or criticizes you, he might have a point!
Always first listen to everyone carefully, and then make your move rather than feeling insulted.
भगवन दत्त तो कुत्तो से भी सीखते थे। अच्छी बाते किसी से भी सीखी जा सकती है
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