Saturday 30 October 2010

जिंदादिल दम्पत्ति

आज मै आप लोगों का परिचय  वाडीकर  परिवार के वर्तमान समय के सबसे वरिष्ठतम युगल से करवाने जा रहा हूँ . ये हैं श्री अरविन्द वाडीकर   व् श्रीमती अंजलि वाडीकर . वाडीकर       परिवार कि   इस पीढ़ी के प्रथम  युगल.. नम्बर वन युगल   यानि हर लिहाज से नम्बर वन ही हैं चाहे वह सुन्दरता , व्यवहार कुशलता,बडप्पन,या अन्य कोई बात हो हर मामले   में  वो एक आदर्श है .
दोनों कि उम्र ७० के  उपर   है लेकिन उत्साह ऐसा कि अच्छा खासा नवयवक/नवयुवती  शरमा जाये . टच-वूड ईश्वर दोनों को लम्बी उम्र दे.  दादा का उत्साह तो देखते ही बनता है . इस उम्र में  भी नया सीखने कि चाह,अच्छा साहित्य पठने का शौक,खाने और खिलाने के शौक़ीन,संगीत   में  भी दखल, आज भी कभी कभी  सिंथेसाइजर पर हाथ आजमाते है.दोपहर में जीवन बीमा निगम सहकारी  सोसायटी में भी काम करने जाते है . आलस और दादा जैसे एक नदी के दो किनारे .उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा जज्बा बिरले लोगों में ही देखने को मिलता है   
 हमारी वहिनी कि याददाश्त इस उम्र में  भी गजब की  है.घर भी इतना साफ सुथरा व् हर चीज सलीके से रखी हुई मिलेगी. हालांकि  इन दिनों उनकी हाथ की  उँगलियों में अकडन के कारण  थोड़ी परेशान जरूर है लेकिन जरा भी ठीक लगा की फिर उसी उत्साह से घर के  काम -काज  में जुट जाती है परिवार में बड़े है तो उनका आचार, विचार व् व्यवहार भी बड़ों जैसा ही है.ईश्वर के प्रति दोनों  ही आस्था रखते है लेकिन किसी आडम्बर में विश्वास नही रखते. दूसरों के दुखों के प्रति भी उतने ही संवेदनशील भी है.  
 .
मुझे उन दोनों को पिछले ५-६ सालों में  और नजदीक से जानने का अवसर  मिला . मै पांच साल तक उनके मकान में  किराये से रहा. उनके  बडप्पन के बहुत सारे द्रष्टान्त है जिनमे से मै कुछ का यंहा उल्लेख करना चाहूँगा.
मै जब किराये से उनके मकान में  रहने  आया तो मेरे से पहले जो किरायेदार रहते थे उनसे भी कम किराया   मुझसे लेते थे मै लगभग पांच साल उनके मकान में  रहा पर इन पांच सालों में कभी भी किराया नही बढ़ाया .

हम लोग मकान खरीदने का विचार कर रहे थे तो  धूप में  भी हमारे साथ चलने को तैयार रहते थे.
एक साल बाद मेरी पत्नी का बस एक्सीडेंट हो गया था उस संकट कि घडी में  दादा वहिनी हमारे लिए बहुत बड़े संबल थे. .वहिनी को पैर  में  तकलीफ थी पर फिर भी घंटो अस्पताल में पत्नी के पास बैठी  रहती  थी.
दादा वहिनी  हमारे  लिए माता पिता के स्थान पर है आज भी हम जब किसी समस्या को लेकर  उनके पास जाते है तो वह उसका उचित निराकरण करते है और सही मार्गदर्शन भी देते है.

दादा वहिनी कि जिन्दादिली को सलाम.              

1 Comments:

At 16 November 2010 at 05:34 , Blogger Unknown said...

I have seen them only twice i guess, but sometimes you just get to know about them so much in that ephemeral moments .... they are really wonderful people!

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home