Tuesday 9 November 2010

खुद्दार महिला

कभी कभी हमारे जीवन में बहुत ही साधारण से लोग  अचानक हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं !अधिकतर मामलों में हमारे स्वार्थ ही होते है , जिनके कारण साधारण व्यक्ति  हमारे  लिए असाधारण हो जाते हैं!.जमनाबाई, यानि की हमारी काम वाली बाई, ऐसी ही एक शख्सियत है, जो हमारे लिए केवल एक काम करने वाली बाई नही, बल्कि घर के अन्य सदस्यों की तरह ही परिवार की एक सदस्य है!जमना,वैसे तो अन्य काम वाली बाई की तरह ही कम पढ़ी लिखी व् निम्नवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है, लेकिन हमारे लिए वह एक विशिष्ठ स्थान रखती है! निश्चित रूप से उसके कुछ कारण भी हैं!
पांच वर्ष पूर्व मेरी पत्नी का एक्सीडेंट हो गया था,  जिसके कारण उसके कमर से नीचे का  भाग लकवाग्रस्त हो गया है  उसे बाथरूम व् टायलेट की ,भी इन्द्रिय  चेतना  नही है! जाहिर है  कि इन्द्रिय चेतना नही होने के कारण, कमर के नीचे के सारे अवयव  निष्क्रिय हैं .व् समस्त कार्य हेतु,उसे  दूसरों पर  निर्भर  रहना पड़ता  है,!ऐसी परिस्थिति में पत्नी की देखभाल और टायलेट बाथरूम साफ करना नहलाना कपड़े साफ करना व् धोना आदि कार्यों के लिए बाई की आवश्यकता थी! हमने इन कार्यों को करने के लिए जमना से पूछा, तो चूँकि उसने पहले कभी ऐसा काम नही किया था अत: उसे थोडा संकोच हुआ, जो की स्वाभाविक भी था !परन्तु प्रेम व् सेवा की  भावना की खातिर,वह यह काम करने को  तैयार हो गयी! तब से आज तक वह पत्नी की पूरे मनोयोग से सेवा कर रही है!किसी व्यस्क का संडास बाथरूम की सफाई का काम, वह भी एक दो दिन की बात नही, तीसों दिन की बात हो, तो घर के लोग ही झुंझला जाते है, लेकिन आज इतने सालों में इस काम को लेकर, मैने जमना के चेहरे पर कभी भी  झुंझलाहट नही देखी! पत्नी की इस अवस्था पर इतनी संवेदनशीलता वह भी एक कामवाली बाई के मन में,निश्चित रूप से पिछले जन्म के उसके कुछ रुनाणुबन्ध ही है!       
तीन चार वर्ष पूर्व जमना की सासू मां का देहांत हो गया था !.हिन्दू मान्यता के अनुसार जब घर में किसी का देहांत हो जाता है तो लगभग दस दिन तक सुतक रहता है और  सामान्तया तेरवां का कार्यक्रम होने के बाद ही घर के लोग   अपने काम पर जाते हैं ! मुझे  आज भी याद है, जब उपरोक्त परिस्थिति में भी, जमना ने कहा था, कि यूँ तो दस दिन तक वह  काम पर नही आ सकती, लेकिन आप के यहाँ ऐसी परेशानी है और  यदि आप लोगों को एतराज न हो तो केवल आप के यहाँ ,मै काम पर आ जाया करूंगी! .एक कम पढीलिखी महिला कि इतनी बड़ी सोच! ऐसी सोच के हम सब कायल हो गए!
घर में आने वाले आगन्तुक का आतित्थ्य केसे करना है वह अच्छी तरह से जानती है! घर में आने  वाले का  पानी, चाय, नाश्ता से स्वागत करना उसे बखूबी आता है! इन सब बातों  के लिए हमें उसे कभी भी कहना नही पड़ता!  
जमना को हमारे यहाँ काम करते करते लगभग छह वर्ष हो गए. कुछ वर्ष पूर्व हमने सोचा कि इतने वर्षों से यह काम कर रही है व् उसने कभी भी  पैसे बढ़ाने कि  बात तक  नही की, और इतने सालों में मंहगाई भी बढ़ गयी है, अत: हमने उसका पगार बढ़ाते हुए उसे अतिरिक्त  पैसे दिए ,लेकिन जमना ने बढ़े हुए पैसे लेने से मना कर दिया और कहा की जो पैसे उसे मिल रहे है व् पर्याप्त हैं और अतिरिक्त पैसे वापस कर दिए!
.क्या आज के जमाने मे ऐसे लोग भी हैं? आश्चर्य होता है, टॉर्च लेकर खोजने से भी ऐसे लोग नही मिलेंगे!.यहाँ जमना कि प्रष्ठभूमि बताना अत्यंत ही प्रासंगिक है! जमना के परिवार में पति, दो लडके व् एक लडकी है .पति महाशय मन हुआ तो काम पर जाते हैं और कमाई का ज्यादातर हिस्सा सट्टे का नम्बर लगाने में चला जाता है, बड़ा लड़का भी  काम कम कर्जा ज्यादा करता है, छोटा लड़का गूंगा व् बहरा है व् आये दिन  घर में  तोड़फोड़ कर अक्सर नुकसान करता रहता है! जाहिर है  घर के पुरुष वर्ग से आर्थिक सहायता नियमित होती हो ऐसा आवश्यक नही है1लड़का कर्ज करता है, और जमना लोगों से पैसा उधार लेकर/मेहनत करके पैसा कमाती है तथा  लडके द्वारा लिया गया , कर्जा चुकाती है!ऐसी प्रष्ठभूमि वाली महिला बढ़ी पगार लेने से मना कर दे, तो ऐसी महिला कि खुद्दारी को सलाम!  जमना जैसी कम पढीलिखी महिला में .ऐसी खुद्दारी ऐसी समझ व् ऐसी सेवा भावना, मैने अच्छे अच्छे पढेलिखे लोगों में भी नही  देखी!


ईश्वर उसे सुखी रखे व् उसके परिवार वालों को सदबुधि  दे!
           




 

1 Comments:

At 15 November 2010 at 23:06 , Blogger Unknown said...

What to say... she just another miracle worker... Hat's off to her!

Seems she firmly believes in 'Work is workship!'

 

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