Monday, 22 November 2010

"इच्छा मृत्यु"- सही या गलत ?

"इच्छा मृत्यु" निश्चित रूप से एक ऐसा विषय जिससे हर  व्यक्ति व्  समाज कि भावनाए व् ,संवेदनाये बहुत ही गहराई से  जुडी है! यह एक ऐसा मुद्दा  है जिस पर काफी गहराई से विचार करने  कि जरुरत है! हालाँकि "इच्छा मृत्यु" शब्द सुनकर ही लोग इस पर  विचार करने के विचार को ही  सिरे से ही नकार देंगे व् शायद मेरे इस विचार को मेरा  दिमागी  दिवालियापन  भी कह सकते हैं ! पर मेरा ऐसा मानना है कि इस विषय पर एक व्यापक द्रष्टिकोण व् सम्पूर्ण व्यवहारिक सोच व् खुले दिमाग  के साथ विचार करने की आवश्यकता है ! हालाँकि कुछ देशों में इस विचार को वैधानिक  मान्यता प्राप्त है !भारत में आज भी यह बहस का मुद्दा है !इस बारे में विभिन्न लोगों की अलग अलग राय हो सकती है
इस बारे में मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि यदि कोई व्यक्ति सालों से बीमार है व् जिसके बारे में डॉक्टर लोगों ने भी हाथ खड़े कर दिए है! वह व्यक्ति केवल जिन्दा लाश कि तरह मृत्यु शैया पर लेटा है  वह स्वंय भी अपनी ऐसी जिन्दगी से तंग आ चूका है व्  इलाज में भी पैसा पानी की तरह बह रहा है! घर के लोग भी आर्थिक रूप से सम्पन्न नही है ! लोगों से भी  उसका कष्ट देखा  नही  जा रहा है  ऐसे में यदि बीमार व्यक्ति स्वेच्छा से मौत को गले लगाना चाहता है, तो मेरी राय में उसे ऐसा करने कि अनुमति दी जानी चाहिए!
मै जानता हूँ कि यह सब कहने में जितना आसान लग रहा है उतना आसान नही है .क्यों कि मृत्यु एक  शाश्वत सत्य है फिर भी हर कोई अंतिम समय तक मौत से झुझता रहता है !ऐसे में मरते हुए व्यक्ति को स्वयम ही मौत के मुंह में ढकेल देना कठिन ही नही असम्भव है! ऐसे व्यक्ति के घर के लोग इस बात के लिए कभी भी तैयार नही होंगे यदि तैयार हो गये तो जीवन भर अपराध भावना से उबर नही पाएंगे!  हालंकि ऐसे व्यक्ति की स्वभाविक मृत्यु होने पर सब लोग यही कहेंगे कि चलो छुटकारा मिला बेचारा बहुत परेशान था!
कुछ लोगों का मानना है इच्छा मृत्यु को वैधानिक स्वरूप मिलने पर इसका दुरूपयोग हो सकता है लेकिन मेरा मत है कि इस बारे में एक खुली बहस की जा सकती है!किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुछ बातें , मसलन जो व्यक्ति इच्छा मृत्यु चाहता है उसकी उम्र क्या है पारिवारिक व् आर्थिक  प्रष्ठभूमि कैसी है क्या वह लम्बे समय से बीमार है उस की बीमारी के बारे में डाक्टरों कि क्या राय है , बीमार व्यक्ति के प्रति उसके घर वालों का व्यवहार कैसा है? आदि अनेक बातें है जिन   विचार आवश्यक है ! तमाम बुध्हिजीवियों से विचार विमर्श कर  इस बारे में सर्व सम्मत(?) या बहुमत के आधार पर  निर्णय लेकर एक  ऐसा मसौदा तैयार कर उसे  वैधानिक स्वरूप दिया जा सकता है!   जिसमे इस बात का ध्यान रहे कि  इसके दुरूपयोग की किसी भी संभवना को पूरी तरह समाप्त किया जा सके!
लेकिन ये सब बाद कि  बातें मुख्य मुद्दा यह है क्या हम, हमारा समाज,हमारी सरकार  ऐसी किसी व्यवस्था पर विचार करने  के लिए भी मानसिक रूप से  तैयार  है?
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Wednesday, 17 November 2010

Capt. D.K. Shukla- A towering personality.

In our entire life we come across with  so many people,but only few of them, we never forget.Capt.D.K. Shukla is one of them. Mr. Shukla is a  well known physiotherapist, and a very kind hearted   person.Earlier he was in army  and posted to various parts of the country. For quite number of years he was in Pimpri (Pune) in a paraplegia center, a rehabilitation center for army personnel,I met him just five years back when my wife met with an accident and he used to come to our house for her physiotherapy treatment.
At present he is associated with Bhandari Hospital, Indore .At the age of 69, he is  still dedicated to his work with the same zeal. He has got vast experience, in his 40 years career he has treated so many complicated cases also. I know one such case,there was one  girl of 21 years who had spinal injury and was  confined to bed only.Capt. Shukla treated her. and now she is completely alright .Now she is married and blessed with a daughter also. Apart from a good  physiotherapist, he is wonderful human being. and a  philanthropic too.
My wife had a bedsore on her waist. But since she is paraplegic patient , it was not possible for me  to take her  often  to hospital for dressing.Capt shukla himself took the responsibility of dressing of bedsore.He did  not charge any thing  for dressing of bedsore for almost of 3-4 months.
I still remember one incident when my daughter met with an accident and had multiple fracture in right leg. As soon as he came to know that  she   is admitted to the hospital, next moment he was in hospital.After few days he started the  treatment.Due to time constraints   I was unable to take my daughter every day to his clinic for physiotherapy, But since he was aware of my problem,so he managed to shift  a huge machine to my residence  for physical exercise for my daughter. Because of  Shuklaji only she could start her normal activity  with in  a short period of 2-3 months only. Shri  Shukla ji  did not take a single penny from me for the treatment of my daughter .On the contrary when I offered some money he told me"Do you think vithika is not my daughter"?. For us he is not a physiotherapist, but he is our family member.We  used to share all our family  matters with each other.
I salute to generosity of Capt. Shukla. May God bless him. We pray to God for his long and healthy life.  


    

Thursday, 11 November 2010

घडल-बिघडल

प्रत्येकाच्या आयुष्यात थोड्याफार घडामोडी होतातच! पण काही घडामोडी अशा असतात ज्यानी एखाद्च सम्पूर्ण आयुष्यच बदलून जात! माझ्या बायको  बरोबर पण अशीच एक घटना घडली, सुमारे पांच वर्षापूर्वी एक बस अपघातात  तिच्या स्पाइनल  काड मध्ये इजा झाली व् कमरेच्या खाली पासूनच्या  भागात इन्द्रिय  चेतना  नाही. व् सर्व अवयव निष्क्रिय झाले आहे! तेंव्हापासूनच तिच्या क्रिया बिस्तर व् व्हीलचेयर वरच सीमित आहे! तस पाहिल  तर आजार म्हणून काहीच नाही पण आपल सर्व आयुष्य परावलम्बी म्हणून जगण ही भावनाच आजार पेक्षा जास्त पीड़ादायक आहे! शिवाय पीड़ित व्यक्तिची सेवा करणं ते ही तीसों दिवस, सादी , सोपी  गोष्ट नव्हे असो! पण प्रत्येकाला आपापल्या  कर्मानुसार भोग भोगावेच लागतात!

हे सर्व जरी सत्य असल, तरी जो व्यक्ति त्या परिस्थितुन जात आहे त्याच्या मन:स्थिति ची कल्पना दूसरा  कोणी ही व्यक्ति ,नाही करु शकतो!अशा आजाराचे  चे उपचार म्हणजे फिजियोथेरपी व् त्यापेक्षा ही जास्त म्हणजे स्वत: मधे जगण्याची इच्छा शक्ति असण  फार गरजेच आहे! माझ्या बायकोच्या बाबतीत मी  ईश्वराचे  आभार मानतो कि, ह्या परिस्थिति मधे सुद्धा, जरी पदोंपदी हीन भावना तिच्या मनावर हावी असली, तरी ही जगण्याची उत्कंठा बळकट आहे!         

ईश्वर तिला व् आम्हा सर्वांना ह्या परिस्थितिला  तोंड देण्याची शक्ति देवो हीच प्रार्थना!

Tuesday, 9 November 2010

खुद्दार महिला

कभी कभी हमारे जीवन में बहुत ही साधारण से लोग  अचानक हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं !अधिकतर मामलों में हमारे स्वार्थ ही होते है , जिनके कारण साधारण व्यक्ति  हमारे  लिए असाधारण हो जाते हैं!.जमनाबाई, यानि की हमारी काम वाली बाई, ऐसी ही एक शख्सियत है, जो हमारे लिए केवल एक काम करने वाली बाई नही, बल्कि घर के अन्य सदस्यों की तरह ही परिवार की एक सदस्य है!जमना,वैसे तो अन्य काम वाली बाई की तरह ही कम पढ़ी लिखी व् निम्नवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है, लेकिन हमारे लिए वह एक विशिष्ठ स्थान रखती है! निश्चित रूप से उसके कुछ कारण भी हैं!
पांच वर्ष पूर्व मेरी पत्नी का एक्सीडेंट हो गया था,  जिसके कारण उसके कमर से नीचे का  भाग लकवाग्रस्त हो गया है  उसे बाथरूम व् टायलेट की ,भी इन्द्रिय  चेतना  नही है! जाहिर है  कि इन्द्रिय चेतना नही होने के कारण, कमर के नीचे के सारे अवयव  निष्क्रिय हैं .व् समस्त कार्य हेतु,उसे  दूसरों पर  निर्भर  रहना पड़ता  है,!ऐसी परिस्थिति में पत्नी की देखभाल और टायलेट बाथरूम साफ करना नहलाना कपड़े साफ करना व् धोना आदि कार्यों के लिए बाई की आवश्यकता थी! हमने इन कार्यों को करने के लिए जमना से पूछा, तो चूँकि उसने पहले कभी ऐसा काम नही किया था अत: उसे थोडा संकोच हुआ, जो की स्वाभाविक भी था !परन्तु प्रेम व् सेवा की  भावना की खातिर,वह यह काम करने को  तैयार हो गयी! तब से आज तक वह पत्नी की पूरे मनोयोग से सेवा कर रही है!किसी व्यस्क का संडास बाथरूम की सफाई का काम, वह भी एक दो दिन की बात नही, तीसों दिन की बात हो, तो घर के लोग ही झुंझला जाते है, लेकिन आज इतने सालों में इस काम को लेकर, मैने जमना के चेहरे पर कभी भी  झुंझलाहट नही देखी! पत्नी की इस अवस्था पर इतनी संवेदनशीलता वह भी एक कामवाली बाई के मन में,निश्चित रूप से पिछले जन्म के उसके कुछ रुनाणुबन्ध ही है!       
तीन चार वर्ष पूर्व जमना की सासू मां का देहांत हो गया था !.हिन्दू मान्यता के अनुसार जब घर में किसी का देहांत हो जाता है तो लगभग दस दिन तक सुतक रहता है और  सामान्तया तेरवां का कार्यक्रम होने के बाद ही घर के लोग   अपने काम पर जाते हैं ! मुझे  आज भी याद है, जब उपरोक्त परिस्थिति में भी, जमना ने कहा था, कि यूँ तो दस दिन तक वह  काम पर नही आ सकती, लेकिन आप के यहाँ ऐसी परेशानी है और  यदि आप लोगों को एतराज न हो तो केवल आप के यहाँ ,मै काम पर आ जाया करूंगी! .एक कम पढीलिखी महिला कि इतनी बड़ी सोच! ऐसी सोच के हम सब कायल हो गए!
घर में आने वाले आगन्तुक का आतित्थ्य केसे करना है वह अच्छी तरह से जानती है! घर में आने  वाले का  पानी, चाय, नाश्ता से स्वागत करना उसे बखूबी आता है! इन सब बातों  के लिए हमें उसे कभी भी कहना नही पड़ता!  
जमना को हमारे यहाँ काम करते करते लगभग छह वर्ष हो गए. कुछ वर्ष पूर्व हमने सोचा कि इतने वर्षों से यह काम कर रही है व् उसने कभी भी  पैसे बढ़ाने कि  बात तक  नही की, और इतने सालों में मंहगाई भी बढ़ गयी है, अत: हमने उसका पगार बढ़ाते हुए उसे अतिरिक्त  पैसे दिए ,लेकिन जमना ने बढ़े हुए पैसे लेने से मना कर दिया और कहा की जो पैसे उसे मिल रहे है व् पर्याप्त हैं और अतिरिक्त पैसे वापस कर दिए!
.क्या आज के जमाने मे ऐसे लोग भी हैं? आश्चर्य होता है, टॉर्च लेकर खोजने से भी ऐसे लोग नही मिलेंगे!.यहाँ जमना कि प्रष्ठभूमि बताना अत्यंत ही प्रासंगिक है! जमना के परिवार में पति, दो लडके व् एक लडकी है .पति महाशय मन हुआ तो काम पर जाते हैं और कमाई का ज्यादातर हिस्सा सट्टे का नम्बर लगाने में चला जाता है, बड़ा लड़का भी  काम कम कर्जा ज्यादा करता है, छोटा लड़का गूंगा व् बहरा है व् आये दिन  घर में  तोड़फोड़ कर अक्सर नुकसान करता रहता है! जाहिर है  घर के पुरुष वर्ग से आर्थिक सहायता नियमित होती हो ऐसा आवश्यक नही है1लड़का कर्ज करता है, और जमना लोगों से पैसा उधार लेकर/मेहनत करके पैसा कमाती है तथा  लडके द्वारा लिया गया , कर्जा चुकाती है!ऐसी प्रष्ठभूमि वाली महिला बढ़ी पगार लेने से मना कर दे, तो ऐसी महिला कि खुद्दारी को सलाम!  जमना जैसी कम पढीलिखी महिला में .ऐसी खुद्दारी ऐसी समझ व् ऐसी सेवा भावना, मैने अच्छे अच्छे पढेलिखे लोगों में भी नही  देखी!


ईश्वर उसे सुखी रखे व् उसके परिवार वालों को सदबुधि  दे!