कैकयी - खलनायिका ?
रामायण की कहानी हर हिन्दुस्तानी ने पढ़ी या सुनी अवश्य है ! कोई भी हिन्दुस्तानी रामायण से अनजान नहीं है !इसे यदि एक कहानी के रूप में देखें तो राम इस कहानी का नायक है ! जिसमे एक आदर्श पुत्र ,पति , राजा, भाई आदि के गुण है ! खलनायक के रूप में रावण ,कुम्भकर्ण ,मेघनाथ ,शूर्पनखा आदि लोगों को रख सकते हैं !नायिका के रूप में सीता का नाम लिया जा सकता है ! चरित्र पात्रों की काफी लम्बी फेहरिस्त हो सकती है !
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कैकयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगे जिसके अनुसार राम को चौदह वर्षों का वनवास और कैकयी के अपने पुत्र भरत को राज गद्दी !हम सभी लोग राम सीता एवम हनुमान को ईश्वर के रूप में आज भी मानते है ! इन लोगों के अलावा रामायण के किसी पात्र को समाज द्वारा ईश्वर का दर्जा नहीं दिया गया ! अर्थात बाकि सभी पात्र सामान्य व्यक्ति थे एसा माना जाना चाहिए !तो अब यदि कैकयी ने मंथरा के कहने पर अपने पुत्र को अयोध्या का राजा के रूप देखने का सपना देखा तो इसमें गलत क्या है ! कोई भी मां अपने बेटे को ऊँचे पद पर देखना चाहती है ! और इसमे कुछ भी गलत नहीं है ! यह बिलकुल सामान्य सी बात है ! किसी भी सामान्य मां के द्रष्टिकोण से देखें तो कैकयी का व्यवहार बिलकुल ही सामान्य कहा जा सकता है और कम से कम निंदनीय तो बिलकुल भी नहीं है ! बल्कि एक सामान्य मां से इसी प्रकार का व्यवहार अपेक्षित है ! चूँकि रामायण सुनाने वालों ने अथवा चित्रित करने वालों ने हमेशा ही कैकयी अथवा मंथरा को खलनायिका के रूप में ही प्रस्तुत किया है! बुद्धिजीवियों द्वारा भी सामान्य मां के मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर इन चरित्रों को प्रस्तुत नहीं किया, इसी लिए आज भी कैकयी अथवा मंथरा जैसे पात्रों को समाज ने खलनायिका के रूप में ही स्वीकार किया है ! आज भी समाज में कोई भी व्यक्ति अपनी बेटी का नाम कैकयी अथवा मंथरा नहीं रखता है!
मेरा समाज से अनुरोध है कि उपरोक्त चरित्रों को सामान्य व्यक्ति मानते हुए इनके मनोविज्ञान को समझते हुए इन पात्रों को खलनायिका के लेबल से मुक्त करे !
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कैकयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगे जिसके अनुसार राम को चौदह वर्षों का वनवास और कैकयी के अपने पुत्र भरत को राज गद्दी !हम सभी लोग राम सीता एवम हनुमान को ईश्वर के रूप में आज भी मानते है ! इन लोगों के अलावा रामायण के किसी पात्र को समाज द्वारा ईश्वर का दर्जा नहीं दिया गया ! अर्थात बाकि सभी पात्र सामान्य व्यक्ति थे एसा माना जाना चाहिए !तो अब यदि कैकयी ने मंथरा के कहने पर अपने पुत्र को अयोध्या का राजा के रूप देखने का सपना देखा तो इसमें गलत क्या है ! कोई भी मां अपने बेटे को ऊँचे पद पर देखना चाहती है ! और इसमे कुछ भी गलत नहीं है ! यह बिलकुल सामान्य सी बात है ! किसी भी सामान्य मां के द्रष्टिकोण से देखें तो कैकयी का व्यवहार बिलकुल ही सामान्य कहा जा सकता है और कम से कम निंदनीय तो बिलकुल भी नहीं है ! बल्कि एक सामान्य मां से इसी प्रकार का व्यवहार अपेक्षित है ! चूँकि रामायण सुनाने वालों ने अथवा चित्रित करने वालों ने हमेशा ही कैकयी अथवा मंथरा को खलनायिका के रूप में ही प्रस्तुत किया है! बुद्धिजीवियों द्वारा भी सामान्य मां के मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर इन चरित्रों को प्रस्तुत नहीं किया, इसी लिए आज भी कैकयी अथवा मंथरा जैसे पात्रों को समाज ने खलनायिका के रूप में ही स्वीकार किया है ! आज भी समाज में कोई भी व्यक्ति अपनी बेटी का नाम कैकयी अथवा मंथरा नहीं रखता है!
मेरा समाज से अनुरोध है कि उपरोक्त चरित्रों को सामान्य व्यक्ति मानते हुए इनके मनोविज्ञान को समझते हुए इन पात्रों को खलनायिका के लेबल से मुक्त करे !