हम साथ साथ हैं
विशाल और रागिनी की शादी को लगभग २५ वर्ष हो चुके थे ! उनकी दो प्यारी बेटियां भी हैं ! विशाल भारत सरकार के किसी उपक्रम में अधिकारी के पद पर हैं व् रागिनी एम् ऐ तक पढ़ी गृहिणी ! यूँ तो आम पति पत्नी की तरह दोनों जिन्दगी जी रहे थे, दोनों में एक दुसरे के प्रति प्रेम भी था! परन्तु कहीं न कहीं दोनों की केमेस्ट्री कुछ गड़बड़ तो थी, क्योंकि जब से रागिनी शादी करके आयी है , आये दिन विशाल रागिनी को किसी न किसी बात पर ताना मारता रहता या खाने में नमक कम या मिर्ची ज्यादा है कह कर नुस्क निकालता रहता है! रात को सोते समय भी तुम्हारे खर्राटे की वजह से मेरी नीद नही हो पाती, आदि अनेक ऐसी छोटी छोटी बातें है, जिनको लेकर विशाल रागिनी को कोसता रहता था! हालंकि रागिनी अपनी और से भरपूर कोशिश करती की गलती न हो परन्तु कहीं न कहीं गलती हो जाती और विशाल को बोलने का एक और मौका मिल जाता! कभी कभी तो लगता था कि विशाल को पुरुष होने का जो दंभ है! और विशाल रागिनी को डाटते समय उसी दंभ को एन्जॉय भी करता है ! ऐसा नही था कि हर बार ही विशाल गलत हो लेकिन फिर भी कभी कभी छोटी सी बात को राइ का पहाड़ बनाना जेसे विशाल कि आदत बन गई थी
इसके विपरीत रागिनी विशाल के रोज रोज के तानों कि वजह से अपनी पुरजोर कोशिश के बावजूद अपना आत्मविश्वास खोती जा रही थी! विशाल खाने पीने का बेहद शौक़ीन है व् वह स्वयम भी अच्छी अच्छी डिशेष बना लेता है ! रागिनी से भी वह अपेक्षा करता है कि वह भी नई नई डिशेष बनाये लेकिन पत्नी को नई डिशेष बनाने में विशेष दिलचस्पी नही थी, यह भी एक कारण , विशाल के तानों का हिस्सा हुआ करता था ऐसा नही था कि दोनों पति पत्नी में आपस में प्यार नही है दोनों एक दुसरे को बहुत चाहते भी है , परन्तु विशाल का रागिनी को अपमानित करना जैसा रोज कि दिनचर्या बन गया था ऐसा लगता था कि रागिनी को अपमानित करके विशाल को मन ही मन आत्म संतुष्टि मिलती थी ! और अपमानित होते हुए जीना रागिनी कि नियति बन गई थी बावजूद इसके दोनों ने शादी कि सिल्वर जुबली बड़े ही धूमधाम से तीन सितारा होटल में मनाई और सारे परिचितों व् रिश्तेदारों को भी आमंत्रित किया!
हमारे समाज में हमारे आसपास ही ढेरों विशाल और रागिनी मिल जायेंगे आवश्यकता केवल इस बात कि है विशाल को अपने पुरुषत्व के दंभ से ऊपर उठ कर रागिनी को जीवन संगिनी का सही दर्जा देना होगा व् रागिनी को भी विशाल कि भावनाओ का आदर करके विशाल की पसंद नापसंद को तरजीह देना होगी ! दोनों में सामजस्य होगा तभी जिन्दगी जीना कहलायेगा वरना जिन्दगी का एक दिन कट गया इसी मानसिकता के साथ जीवन बीत जायेगा ! जीवन जीना चाहिए काटना नही !