"सत्यनारायण की कथा"
हिन्दू समाज में किसी उत्सव अथवा मांगलिक कार्य सम्पन्न होने पर अथवा कई बार बिना किसी प्रयोजन के भी सत्यनारायण की कथा करवाने का चलन है ! बाकायदा किसी पंडित को बुलवाकर पूरे विधि विधान से सत्यनारायण भगवान की कथा करवाई जाती है ! सत्यनारायण की इस कथा में चार या पांच अध्याय है जिन्हें पंडित जी पढकर सुनाते है इसके बाद आरती व् प्रसाद वितरण कार्यक्रम व यजमान पंडित जी को दक्षिणा देकर ससम्मान बिदा करता है ! अब मै बहुत ही संक्षिप्त में इन अध्याओं के बारे में थोडा सा बताना चाहूँगा :
प्रथम अध्याय में पूजा के विधि विधान के बारे में बताया गया है ! पूजन सामग्री क्या होनी चाहिए व् पूजा कब और कैसे करना चाहिए आदि !
दुसरे अध्याय में भगवान विष्णु ने ब्राह्मण के रूप में प्रकट होकर व्रत का महात्म बताया और फिर निर्धन ब्राह्मण ने व्रत किया और सुखी हो गया !
तीसरे और चौथे अध्याय में अत्यंत प्रसिद्द लीलावती और कलावती की कहानी है ! उम्मीद करता हूँ की इस कहानी से सभी परिचित होंगे !
चौथे अध्याय में अंगध्वज नामक राजा द्रारा प्रसाद का तिरस्कार करने पर दुःख भोगना पड़ा व् अंत में राजा उन्ही ग्वालों के बीच गया व् प्रसाद ग्रहण किया !
सत्यनारायण भगवान की कथा के इन सारे अध्यायों में इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार सत्यनारायण के व्रत की उपेक्षा करने अथवा व्रत करने का मनोगत व्यक्त करने के बावजूद सत्यनारायण की कथा न करने के कारण सत्यनारायण भगवान क्रोधित हो गए व् भगवान के क्रोध/श्राप के कारण मनुष्य को दुःख/कष्ट झेलने पड़े!
पर मेरी शंका केवल इतनी सी है कि जैसा कि " सत्यनारायण की कथा " उचारण से किसी कथा अथवा कहानी का आभास होता है तो वास्तव में क्या सत्यनारायण की कोई कथा है ? और यदि सत्यनारायण की कोई कथा नहीं है तो क्यों न इसे "सत्यनारायण की कथा" के स्थान पर "सत्यनारायण व्रत " के नाम से ही संबोधित करें ! ऐसी मेरी अपनी राय है !
3 Comments:
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